निताइ
गौर तत्त्व पत्रम्
तत्त्व पत्रम् – १
गौर-अप्राकट्योपरान्त समस्त संगोप्य शास्त्र-समूह द्वारा गौर-तत्त्व का स्वत:
प्रकाश
गुप्तशास्त्र अनायासे हइल प्रकट
घुचिल जीवेर जत युक्तिर संकट
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.१९ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“गौरांग महाप्रभु के अप्रकट होने के पश्चात, नित्यानन्द
प्रभु की आज्ञा से गौर नाम-लीला-गुण-धाम के यशोगान से सुसज्जित समस्त गुप्त
शास्त्र स्वत: प्रकट हो गए (क्योंकि उन्हें भविष्य में भी रहस्याच्छादित रखना
प्रयोजनीय नहीं है), ताकि समस्त जीवों के त्रिताप जनित क्लेश का पूर्णत: नाश हो
सके|”
तत्त्व पत्रम् – २
निताइ का कलिकाल ग्रस्त जीव से निर्मल गौरांग-प्रेमधर्म गृहण हेतु दैन्यपूर्ण
आह्वान
एसो हे कलिर जीव, छाड़ कुटिनाटि
निर्मल गौरांग-प्रेम लह परिपाटि
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.२६ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
निताइ कहते हैं – “हे कलिकाल के जीवों, अपनी कुटिलता, शठता,
प्रापंचिक-लज्जा एवं तुच्छ आध्यक्षिक-ज्ञान का वर्जन करो, तथा मेरे सान्निध्य में गौरांग
व उनके नामाश्रय से युक्त शुद्धतम प्रेम-वर्त्म को अञ्गीकार करो|”
तत्त्व पत्रम् – ३
गौरांग-नामावलम्बन प्रणाली में समस्त हानि अथवा बाधा का
सर्वथा अभाव
कष्ट नाइ, व्यय नाइ, न पा’बे
यातना
श्रीगौरांग बलि’ नाच नाहिक
भावना
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.३५ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
निताइ कहते हैं – “गौरांग नाम उच्चारण करने में किसी प्रकार
की कोई बाधा अथवा हानि नहीं है, अत: पूर्ण तन्मयता से नृत्यरत हो कर त्रिकालगत भूत-वर्तमान-भविष्य
के समस्त त्रितापों का शमन करो|”
तत्त्व पत्रम् – ४
केवल एक बार नित्यानंद एवं गौरांग नामोच्चारण से प्रारब्ध-पाप-समूल विध्वंस
गौरांग निताइ जेइ बले एक बार
अनंत करम-दोष अंत हय ता’र
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.२६ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“नित्यानंद एवं गौरांग नाम का केवल एक बार
उच्चारण करने से ही अनंत कर्म-दोष, पाप-राशि एवं तदुद्भूत-पापफल समूलत: भस्मीकृत
हो जाता है|”
तत्त्व पत्रम् – ५
कलिकाल में उद्धार का सर्वोत्कृष्ट, किन्तु रहस्यमय
उपाय
आर एक गूढ़ कथा शुन सर्व जन
कलिजीवे योग्यवस्तु गौरलीला-धन
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.३९ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“हे कलिकाल के जीवों,
निजोद्धार हेतु इस युग का अत्यंत रहस्याच्छादित उपाय श्रवण करो| कलिग्रस्त जीवों
के लिए सर्वोत्तम, प्रासंगिक तथा युक्ति-संगत उपाय है – श्रीगौरांग महाप्रभु के
नाम-लीला-धन का श्रवण, जप तथा कीर्तन|”
तत्त्व पत्रम् – ६
श्रीगौरांग का राधा-कृष्ण युगलमूर्तिरूप में
नित्य-विलास
गौरहरि राधा-कृष्णरूपे
वृन्दावने
नित्यकाल विलास करये सखी-सने
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.४० (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
आकर-स्वरूप श्रीगौरहरि (गौरांग) ही श्रीधाम वृन्दावन में गोपांगनाओं के संग नित्यलीला
विलास करने हेतु स्वयंरूप राधा-कृष्ण मूर्तीद्वय के रूप में विस्तार करते हैं|
(एकामेवाद्वितीयम् तत्त्व दो स्वरूपों में विस्तारित होता है)
तत्त्व पत्रम् – ७
केवल कृष्ण नाम-लीला से परिचित होने मात्र से कृष्ण प्रेमप्राप्ति
दुस्साध्य
कृष्णनाम कृष्णधाम – महात्म्य अपार
शास्त्रेर द्वाराये जाने सकल संसार
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.४२ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“साधारण
जनगण वैदिकाम्नाय-शास्त्र द्वारा कृष्ण नाम-लीला के अपार महात्म्य से भिज्ञ होने
पर भी शुद्ध कृष्णप्रेम उनके के लिए दुष्प्राप्य ही रहता है|”
तत्त्व पत्रम् – ८
कृष्ण नाम-लीलाभिज्ञ होने पर भी कृष्ण प्रेमप्राप्ति
दुस्साध्य क्यों?
तबु कृष्ण प्रेम साधारणे नहीं
पाए
इहार कारण किवा चिन्तह हियाये
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.४३ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“यद्यपि साधारण जनगण कृष्ण नाम-लीला के अपार महात्म्य से भिज्ञ है, तथापि शुद्ध कृष्ण प्रेम उनके लिए दुष्प्राप्य
है – अपने ह्रदय में इस कारण की गवेषणा करना तुम्हारे लिए अत्यावश्यक है|”
तत्त्व पत्रम् – ९
आध्याक्षिक जीवों की गूढ़तत्त्व के प्रति उदासीनता
इहाते आछे त’ एक गूढ़तत्त्व-सार
माया मुग्ध जीव ताहा ना करे
विचार
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.४४ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“बहि:प्रज्ञा-चालित मायाविमूढ़ जीव इस गूढ़ रहस्य को उपलब्ध
करने में असमर्थ होते हैं की कृष्ण नाम-गुण-लीला श्रवण-कीर्तन करने के पश्चात भी कृष्णप्रेम
उनके ह्रदय में उदित क्यों नहीं होता|”
तत्त्व पत्रम् – १०
कृष्णप्रेम अप्राप्ति का मूल कारण अपराध पुंज
बहु जन्मे कृष्ण भजि’ प्रेम नाहि हय
अपराध-पुंज ता’र आछये निश्चय
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.४५ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“यदि बहुजन्म में कृष्णभजनानुरक्त होने पर भी ह्रदय-प्रकोष्ठ
में कृष्णप्रेमोदय न हो तो निश्चितरूप से यह जानना चाहिए की साधक के
ह्रदय में असंख्य अपराध विद्यमान हैं|”
तत्त्व पत्रम् – ११
केवल अपराध विहीन नामभजन से ही कृष्ण प्रेमोदय संभव
अपराध शून्य ह’ये लय कृष्णनाम
तबे जीव कृष्णप्रेम लभे अविराम
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.४६ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“जीव को अपरिच्छिन्न कृष्णप्रेम की प्राप्ति केवल पूर्णतः अपराध
विहीन दशा में ही कृष्ण-नामानुशीलन गृहणपूर्वक होती है|”
तत्त्व पत्रम् – १२
श्रीगौरांग महाप्रभु अपराधयुक्त जीवों के भी कृष्णप्रेम प्रदाता
श्रीचैतन्य-अवतारे बड़ विलक्षण
अपराधसत्त्वे जीव लभे प्रेमधन
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.४७ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“श्रीचैतन्य महाप्रभु का अवतार अन्य समस्त अवतारों से अत्यंत
विलक्षण है क्योंकि वे अपराधयुक्त जीवों को भी कृष्णप्रेम का दान करते हैं|”
तत्त्व पत्रम् – १३
स्वयं शुद्ध कृष्णप्रेम द्वारा निताइ-गौर नामाश्रय युक्त
जीव के प्रति अन्वेषण
निताइ-चैतन्य बलि’ जेइ जीव
डाके
सुविमल कृष्णप्रेम अन्वेषये ता’के
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.४८ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“नित्यानंद एवं गौरांग नामावलंबन पूर्वक जो जीव उनको
पुकारते हैं, उन जीवों के प्रति शुद्धकृष्णप्रेम स्वयंमेव धावित होता है|”
तत्त्व पत्रम् – १४
अपराध युक्त दशा में भी प्रेमपूर्ण अश्रुविसर्जन
अपराध बाधा ता`र किछु नाहि करे
निरमल कृष्णप्रेमे ता`र आँखि झरे
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.४९ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“नित्यानंद एवं गौरांग नाम ग्रहण करने के उपरान्त अपराध किसी
भी प्रकार की बाधा सृष्ट नहीं करते तथा अपराधयुक्त दशा में भी चित्त कृष्णप्रेमाविष्ट
हो जाता है, जिसके फलस्वरूप नेत्रद्वय अश्रुसज्जित हो पड़ते हैं|”
तत्त्व पत्रम् – १५
स्वल्पकाल में ही अपराधभंजन तथा प्रेमवर्धन
स्वल्पकाले अपराध आपनि पलाय
ह्रदय शोधित हय, प्रेम बढ़े ताय
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.४९ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“नित्यानंद एवं गौरांग नाम ग्रहण करने से अपराध शनै:-शनै: स्वयंमेव
ही विदूरित हो पड़ते हैं| तब ह्रदय पूर्णरूपेण मार्जित हो जाता है तथा कृष्णप्रेम
की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है| अपराधमुक्त दशा में जीव कृष्णाकर्षित होकर प्रेम
में दैन्यपूर्ण क्रंदन करता है|”
तत्त्व पत्रम् – १६
आत्मोद्धार निमित्त अन्य समस्त उपाय अनुपादेय
कलि जीवेर अपराध असंख्य दुर्वार
गौर नाम बिना तार नाहिक उद्धार
श्री नवद्वीप धाम महात्म्य १.५१ (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर)
“कलिग्रस्त जीवों के अपराध असंख्य तथा दुर्विजेय हैं, अतः
गौरांग नामप्रपत्ति ही उनके उद्धार का एकमेव उपाय है, अन्य समस्त उपाय मात्र
दौर्बल्य-सूचक हैं|”