Tuesday, May 21, 2013

नित्यानंद - गौरांग नाम महिमा स्तोत्र (Hymn for Singing Glories of Holy Names of Nityananda and Gauranga)



नित्यानन्द गौरांग नाम महिमा स्तोत्र


(1) श्री गौरांग नित्यानन्द अद्वैतचंद्र । गदाधर श्रीवासादी गौरभक्त वृंद ॥
(2) गौरभक्त प्रभु से अधिक उदार । गौरभक्त-वृन्द को प्रथम नमस्कार ॥
(3) सुरेश्वर व्रजेश्वर आनंद धाम । कृष्ण और बलराम जिनका नाम ॥
(4) कलि में बने गौर नित्यानन्द राय । नवद्वीप पुरी में लीला प्रकटाये ॥
 (5) कृष्णराधाप्रेम हेतु आस्वादन । गौरांग रूप कलिकाल प्रकाशन ॥
 (6) कृष्ण छन्न-रूप गौरांग पावन । आदि अनादि सर्व कारण-कारण ॥
 (7) नित्यानन्द बलराम मूल संकर्षण । वैकुंठपति जीव-महत-कारण ॥
(8) गौरांग नाम-रूप वेद बखाने । उपनिषद संहिता यामल पुराणे ॥
(9) आठ सौ चौसठ कोटि वर्षोपरान्त । गौर रूपे अवतरि श्रीराधाकांत ॥
(10) सत्ययुगश्वेतवर्ण, त्रेता में लाल । द्वापर मे श्यामवर्ण, स्वर्णकलिकाल ॥
(11) सतयुग ध्यान और त्रेता में यज्ञ । द्वापर में अर्चन, कलि नाम-यज्ञ ॥
(12) ‘नित्यानन्द’, ‘गौरांग’, हरे कृष्ण - मंत्र । कृष्ण आकर्षिणी शक्ति अनंत ॥
(13) जीव का नित्यधर्मप्रेम कृष्ण प्रति । नैमित्तिक धर्म हय जड़ देह प्रति ॥
(14) गौरांग भक्ति प्रचारक नित्यानन्द । जिनके उपास्य गौरांग कृष्ण ॥
(15) गौर प्रेम-नाम-रूप-गुण-लीला-धाम । ये हैं निताइ के प्राण समान ॥      
(16) ‘नित्यानन्द’, ‘गौरांग’, हरे कृष्ण – नाम । प्रथम द्विसहस्त्र जप, अंत लक्षनाम ॥
(17) ग्रन्थ ‘नवद्वीप धाम महात्म्य’ । भक्तिविनोद कृत महिमा अगम्य ॥
(18) नवद्वीप पुरी व्रज यात्रा, एकादशी । चतुर्नियम करे पाप विमुक्ति ॥
(19) नित्यानन्द गौरांग हरे कृष्ण नाम । सर्वत्र प्रचार हय नगरादि-ग्राम ॥
(20) भक्तिवेदांत श्रील प्रभुपाद । गौरांग-सेनापति महिमा अगाध ॥
(21) प्रभुपाद कहे नवीन भक्त जन । प्रथमे महामंत्र न करो जपन ॥
(22) प्रथमे निताइ-गौर नामाश्रय । तबे कृष्ण-नाम विमल रति हय ॥
(23) प्रभुपाद कहे गौर-निताइ -हरेकृष्ण । नाम में अंतर नहीं – गौर ही कृष्ण ॥
(24) प्रभुपाद कहे जो जपे गौर नाम । हरे कृष्ण महामन्त्र जप के समान ॥
(25) प्रभुपाद कहे गुरु इच्छा बलवान । पाश्चात्य देशों में फैले गौर नाम ॥
(26) पंचतत्त्व मंत्र से आरम्भ करो जप । गौरांग मन्त्र करो सर्व काल जप ॥
(27) निताइ गौर नाम सतत जपे जो । गृही या त्यागी हो सदा सेवा करो ॥
(28) प्रभुपाद कहेतीन प्रामाणिक नाम । सदा सेवनीय शास्त्र-प्रमाण ॥
(29) प्रभुपाद कहेमहामंत्र से उत्तम । जो जीव गौरनाम सेवे सर्व क्षण ॥
(30) कृष्ण-नाम सिद्ध जीव पे कृपा करे । गौर-निताइ नामबद्ध जीव उद्धरे ॥
(31) प्रभुपाद कहेगुरु चुने योग्य मन्त्र । यथायोग्य शिष्य को दे यथा मन्त्र ॥
(32) गौरांग निताइ नामाश्रय दीक्षा । जो स्वीकारे परिपूर्ण हो सर्व इच्छा ॥
(33) शिवानंद सेन जपे चाराक्षर मंत्र । यही मंत्राचार्य गौरांग मंत्र ॥
(34) भक्तिविनोद और भक्तिसिद्धांत । कहें गौरभक्त का प्राण गौरनाम  
(35) चैतन्य मंगल कहे गोलोक मंत्र । राधा रुक्मिणी जपे गौरांग मंत्र ॥
(36) सप्त-ऋषि जपे गौरांग नाम । गौर दर्शन पायमहाभाग्यवान ॥
(37) शिव ने उमा को दिया गौरांग मंत्र । उमा कहे अन्य मन्त्र जंजाल तंत्र ॥
 (38) मार्कण्डेय के प्रति सुरभि कहे । गौरनाम जप से भव पार हय ॥
(39) गौरांग कहें मैं कलि में नारायण । सभी जन रहो मेरे नाम परायण ॥
(40) गौरांग कहे धरा-नगरादि-ग्राम । सर्वत्र प्रचार होगा मेरा यह नाम ॥
 (41) निताइ को गौर ने भेजा बंगदेश । गौरनाम, फिर कृष्णनाम उपदेश ॥
 (42) नित्यानन्द आज्ञानित्य लह गौरनाम । गौरभक्ति करेवही नित्यानन्द प्राण ॥
 (43) नित्यानन्द आज्ञा को जो भी ठुकराये । महाविनाश अति तत्क्षण आये ॥
(44) पूर्वकाल सुकृति जिनके न हय । गौरनाम महिमा प्रकट न हय ॥
(45) उच्च होकर यदि निंदे गौर नाम । पुनरपि दंडे यम नरकादी स्थान ॥
 (46) नित्यानन्द नाम जपे कृष्ण प्रेमोदय । रोमांचित सब अंगअश्रु गंगा वय ॥
 (47) जे भक्त नित्यानंद नाम श्रवणे । निश्चय मिले कृष्णचंद्र उसे तत्क्षणे ॥
 (48) पुरुषोत्तम, बलराम और रामदास । नित्यानंद नाम जपेहय उल्लास ॥
 (49) निताइ नामाश्रय जो न लय । भवचक्र पड़े, कभी पार न हय ॥
 (50) मूर्ख पतित को निताइ करे पार । ब्रह्माण्ड पवित्र हयनिताइ नाम सार ॥
 (51) नित्यानंद नाम जपे, अपराध जाय । गौर सम्बन्ध हय, प्रेम भक्ति पाय ॥
 (52) हरे कृष्ण महामंत्रबत्तीस अक्षर । युगल ब्रह्म नामजीव तारक प्रखर ॥
 (53) ‘हरे’कृष्णाकर्षिणी राधा स्वयं । ‘राम’ का अर्थ श्री राधा रमण ॥
 (54) राधाकृष्ण माधुर्य-मधु आस्वादन । हरेकृष्णमंत्रस्मृति-जप-कीर्तन ॥
 (55) हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
 (56) कलि जीव अपराध असंख्य दुर्वार । बिना गौरांग नाम हय न उद्धार ॥
 (57) नित्यानंद गौरांग कहे एक बार । सर्व करम दोष अन्त हय तार ॥
 (58) नित्यानन्द गौरांग जो जीव पुकारे । शुद्ध-कृष्णप्रेम उस जीव को पुकारे ॥
 (59) गौरांग उपदेशहरे कृष्ण नाम । नित्यानन्द उपदेश‘गौरांग’ नाम ॥
 (60) गौरभक्त उपदेश‘नित्यानन्द’ नाम । त्रिजनेर आज्ञापालन करे बुद्धिमान ॥
(61) गौर नाम जप से हो पुलकित शरीर । तभी शुद्धनाम जप से बहे नीर ॥
 (62) नयन में जल भरे जपे गौरनाम । उसको निताइ माने प्राणों के समान ॥
 (63) गौरांग नाम बिना कृष्णभक्ति करे । कृष्ण बहु काल पायअपराध बढ़े ॥
 (64) गौरांग नामयुक्त महामंत्र करे । कृष्ण अतिशीघ्र पाय, माया से तरे ॥
 (65) कोटि वर्ष लय कृष्ण नाम जे जन । अपराध वशे न रति प्रकटन ॥
(66) गौरांग नाम लयकृष्ण कृपा हय । अल्प दिने व्रज-राधाकृष्ण सेवा पाय ॥
(67) निज सिद्धदेह पायसखि-जनाश्रय । कुंज निवास तथा युगल सेवा पाय ॥
 (68) नित्यानन्द गौरांग नाम बिना भाई । न तो पाए राधाकृष्ण न पाए बलाइ ॥
 (69) पशु पक्षी सुने यदि गौरांग नाम । अंत काल सभी जाएं गौरांग धाम ॥
(70) गौरांग नाम सम पुण्य व्रत नाहीं । सिद्धि-शांति-मुक्ति-प्रेम सर्व वस्तु पायी ॥
(71) निताइ-गौर-कृष्ण नाम सर्वोतम हय । सर्व करम बीज मूल नष्ट हय ॥
 (72) पिता-माता-बंधु-सखा-गुरूजी-स्वजन । गौर नाम अनादरे – हय शत्रु सम ॥
 (73) गौरांग जप कृष्ण नाम जप सम । गौर-कृष्ण भेद करेपाषंडी ध्रुवम॥
(74) एक गूढ़ कथा सुनो सर्व सारासार । माया मुग्ध जीव कभी करे न स्वीकार ॥
 (75) कृष्ण-नाम, कृष्ण-धाममहिमा अपार । शास्त्र के द्वारा जाने सर्व संसार ॥
 (76) किन्तु कृष्ण नाम जो सेवे बहु काल । कृष्ण प्रेम प्राप्ति हो अति क्लेश-काल॥
(77) बहु जन्म कृष्णभजेप्रेम नहीं पाय । अपराध पुंज से बाधा उपजाए ॥
 (78) कृष्ण नाम करे अपराध-विचार । जपकाल न हय प्रेम विकार ॥
 (79) अपराध शून्य जो जपे कृष्ण नाम । वही पावे कृष्णचन्द्र-प्रेम अविराम ॥
 (80) दस नाम अपराध कृष्ण नाम गणे । वही अपराध मिटें निताइ-गौर नामे ॥
 (81) निताइ गौरांग नाम बड़ विलक्षण । अपराधी जन को भी मिले प्रेम धन ॥
 (82) निताइ गौरांग बोलेउसे प्रेम लभे ।अपराध जाय और पुन: प्रेम बढ़े॥
 (83) नित्यानन्द गौरांग नाम-धाम-गुण । अपराध नहीं माने तारणे निपुण ॥
 (84) हृदय मरूस्थल में भक्ति सूखे अति । निताइ गौरनाम से वर्षे प्रेम वृष्टि ॥
(85) निताइ गौरांग जपमुख्य प्रयोजन । कृष्ण विमुख हो उन्मुख तत्क्षण ॥
 (86) आया कलि काल घोर, रोग हुआ भारी । उत्तम औषध बिना निवारण नाही ॥
 (87) कृष्ण ने रखे सदा गुप्त जो नाम । कलि में प्रकाशे निताइ-गौरांग नाम ॥
 (88) यही तो परम गुप्त कलि-रहस्य । जो भी इसे जाने पाय प्रेमभक्ति रस ॥
(89) कलि जीव योग्य वस्तुगौरलीलाधन । गौर बिना कलिकाल किंचित न मर्म ॥
(90) गौरांग लीला व्यासवृन्दावन दास । कलि काले चैतन्य भागवत प्रकाश ॥
(91) चैतन्य भागवत जो सुने यवन । वो महावैष्णव बने तत्क्षण ॥
 (92) चैतन्य भागवतभुवन तारण । महिमा निताइ की परम पावन ॥
 (93) श्रीमदभागवतपरमहंस गीता । चैतन्य भागवत न मांगे योग्यता ॥
 (94) चंद्रामृत, मंगल और चरितामृत । चैतन्य भागवतपरम अमृत ॥
 (95) नवद्वीप नवखण्ड व्रज नववन । सोलह नदिया बहे गुप्त वृन्दावन ॥
 (96) नाम संकीर्तन, नवद्वीप-पुरीवास । गौर नामाश्रय पाबे शुद्धभक्ति आश ॥
(97) व्रज-अपराधी पाय ब्रह्म-निर्वाण। वही नवद्वीप पाय प्रेमभक्ति-ज्ञान ॥
 (98) नवद्वीप स्मरण यदि नराधम करे। महावैष्णव हय तीर्थ शुद्ध करे ॥
 (99) नवद्वीप त्यागे आर सर्व तीर्थ जाय । दुर्भागा अतिराधाकृष्ण न पाय ॥
 (100) सकल साधन भक्ति विहीन जो नर । नवद्वीप वास करेपाय प्रेम वर ॥
 (101) भोग इच्छा से भी नवद्वीप जाय । जन्म-मृत्यु-चक्र से सदा मुक्ति पाय ॥
 (102) कलिकाल अन्य धाम अत्यंत दुर्बल ।नवद्वीप-पुरी-धामपरम प्रबल ॥
 (103) नवद्वीप-पुरी-व्रज, गौर-कृष्ण नाम । भेद जो करेपाय नरक में स्थान ॥
 (104) ब्रह्म, परमात्माहै गौण नाम । हरिलीला संबोधकहै मुख्य नाम ॥
 (105) वेदातीत हयविष्णु सहस्त्र नाम । उसके समान केवल एक राम नाम ॥
(106) तीन राम नाम समएक कृष्ण नाम । कृष्ण नाम मुख्यतर– शास्त्र प्रमाण ॥
 (107) निताइ गौर नाम मुख्यतर-मुख्यतम । सर्व नाम फल मिले जिसके सेवन ॥
(108) निताइ गौर नाम जय-ध्वज प्रकाश । भक्तिरत्न साधु गौरांगपाद आश ॥


महास्तोत्र महात्म्य अष्टक


(1) यह महास्तोत्र नित्य जो पढ़े । गौर तत्व विज्ञ बनेगौर धाम चले ॥
 (2) अष्टोत्तर-शत श्लोक धरे महाशक्ति । नित्यपाठ करे पाबे शुद्ध कृष्णभक्ति ॥
 (3) नित्यानन्द-गौरांग-हरेकृष्ण नाम । इनसे परिपूर्ण सर्व भक्ति-काम ॥
 (4) एक बार पढ़े, या पढ़े बारम्बार । मनोवांछित पायवृन्दावन विहार ॥
 (5) गौरांग नामाश्रय महादीक्षा लय । नाम जप करे सर्व इच्छा पूरी हय ॥
 (6) भुक्ति-मुक्ति-सिद्धि उसकी दासिका बने । अन्तकाले सखी संग श्रीवृन्दवने ॥
 (7) भक्तिरत्न साधु स्वामी सदा ये कहे । भव रोग दूर हयआनंद मिले ॥
 (8) हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥

Monday, May 6, 2013

परिप्रष्नेन



परिप्रष्नेन



विभिन्न भक्तों द्वारा श्रील भक्तिरत्न साधु स्वामी गौरांगपाद से पूछे गए प्रश्न :





१. प्रारब्ध तथा अणु-स्वतंत्रता

२. जीव के स्वरूपगत लक्षण

३. श्रीमन्पुरिपाद द्वारा प्रदत्तमन्त्र