जीव के स्वरूपगत लक्षण
प्रश्न : शचिनंदन दास : प्रिय स्वामी गौरांगपाद, आपके चरणों में, वैष्णवों के
चरणों में तथा हमारे प्रिय नित्यानंद-गौरांग के चरणों में साक्षात दंडवत प्रणाम!
मेरा प्रश्न जीव के स्वरूपगत ११ लक्षणों से सम्बंधित है| श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहते
हैं की प्रत्येक जीव के लिए परस्पर पृथक स्वरूपगत लक्षण होते हैं| अतः ऐसा कौन सा
सबसे सुगम उपाय है जिसके द्वारा जीव अपने स्वरूपभूत लक्षणों का अनुभव कर सकता है ?
उत्तर:
केवल एक ही ऐसे प्रणाली है जिसके द्वारा प्रत्येक जीव स्वरूपगत वपु के ११
नित्य-लक्षणों का अनुभव कर सकता है, और यह उपाय है – नित्यानंद, गौरांग, तथा हरे
कृष्ण महामंत्र का पूर्ण तन्मयता से जप एवं कीर्तन करना| इस के इलावा अन्य कोई भी
पंथ, प्रणाली अथवा पद्धति न तो जीव का उद्धार करने में सक्षम है, और न ही इस
कलिकाल में अन्य कोई भी उपाय कारगर है| श्रीनाम उपासना ही आत्म-साक्षात्कार तथा
भग्वत्साक्षात्कार हेतु एकमात्र अभीप्सित वस्तु है|
श्रील
भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं:
प्रेमेर कलिका नाम, अद्भुत रसेर धाम
हेन बल करये प्रकाश
श्रीनामप्रभु
विशुद्ध भगवत्प्रेम की कलि (पुष्प का उद्गम स्थान) के रूप में अवस्थित हैं तथा यह
कलि अनंत आश्चर्यमय दिव्य रसों का धाम है| नाम-प्रभु की कृपा से ही मेरे नेत्रों
के समक्ष समस्त तत्त्व तथा सिद्धांत स्वंयमेव प्राकाशित हो गए हैं|
इष्ट विकासी’ पुन:, देखाए निज रूप-गुण
चित्त हरि लय कृष्ण पास
जैसे
जैसे यह हरिनाम रुपी पुष्प-कलिका प्रस्फुटित होती है, उसी रूप से ही वह क्रमश्तः मेरे
आध्यात्मिक वपु के रूप एवं स्वरूपभूत लक्षणों को प्रकाशित करती है| इस प्रकार से
श्रीनाम प्रभु मेरे चित्त को आकर्षित कर के श्रीकृष्ण के उत्तरोत्तर अधिक समीप ले
आते हैं|
पूर्ण विकासित हेन , वृजे मोर याय लेन
देखाए मोर स्वरुप विलास
जब यह
हरिनाम-कलिका पूर्ण रूप से प्रस्फुटित हो कर पुष्प का रूप धारण कर लेती है, तब व्रज-लीलान्तर्गत
नित्यदेह तथा निज सेवा को प्रकाशित कर देती है|
मोर सिद्ध देह दिया, कृष्ण पासे राखे गिया
एइ देह करे सर्वनाश
अत:
इस प्रकार से दिव्य एकादश लक्षणों से युक्त मेरे स्वरूपभूत दिव्य वपु को प्रकाशित
कर के श्रीहरिनाम मुझे कृष्ण के अत्यंत निकटस्थ अवस्थित करते हैं, तथा प्रपंचान्तर्गत
जड़वपु को संपूर्णतः अदृष्टिगोचर कर देते हैं|
श्रील
भक्तिविनोद ठाकुर विरचित इन श्लोकों की व्याख्या मुझे स्वयं करनी पड़ी क्योंकि
अन्यत्र प्राप्त व्याख्याओं के पठनोपरान्त मुझे संतोष की प्राप्ति नहीं हुई|
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