नित्यानन्द गौरांग नाम महिमा स्तोत्र
(1) श्री गौरांग नित्यानन्द
अद्वैतचंद्र । गदाधर श्रीवासादी गौरभक्त वृंद ॥
(2) गौरभक्त प्रभु से
अधिक उदार । गौरभक्त-वृन्द को प्रथम नमस्कार ॥
(3) सुरेश्वर व्रजेश्वर
आनंद धाम । कृष्ण और बलराम जिनका नाम ॥
(4) कलि में बने गौर
नित्यानन्द राय । नवद्वीप पुरी में लीला प्रकटाये ॥
(5) कृष्ण– राधाप्रेम
हेतु आस्वादन । गौरांग रूप कलिकाल प्रकाशन ॥
(6) कृष्ण छन्न-रूप गौरांग पावन
। आदि अनादि सर्व कारण-कारण ॥
(7) नित्यानन्द बलराम मूल संकर्षण
। वैकुंठपति जीव-महत-कारण ॥
(8) गौरांग नाम-रूप वेद
बखाने । उपनिषद संहिता यामल पुराणे ॥
(9) आठ सौ चौसठ कोटि
वर्षोपरान्त । गौर रूपे अवतरि श्रीराधाकांत ॥
(10) सत्ययुग–
श्वेतवर्ण, त्रेता में लाल । द्वापर मे श्यामवर्ण,
स्वर्ण– कलिकाल ॥
(11) सतयुग– ध्यान और त्रेता में यज्ञ । द्वापर में अर्चन, कलि– नाम-यज्ञ ॥
(12) ‘नित्यानन्द’, ‘गौरांग’,
हरे कृष्ण - मंत्र । कृष्ण आकर्षिणी शक्ति अनंत ॥
(13) जीव का नित्यधर्म–
प्रेम कृष्ण प्रति । नैमित्तिक धर्म हय– जड़
देह प्रति ॥
(14) गौरांग भक्ति प्रचारक
नित्यानन्द । जिनके उपास्य गौरांग कृष्ण ॥
(15) गौर प्रेम-नाम-रूप-गुण-लीला-धाम
। ये हैं निताइ के प्राण समान ॥
(16) ‘नित्यानन्द’, ‘गौरांग’,
हरे कृष्ण – नाम । प्रथम द्विसहस्त्र जप, अंत लक्षनाम ॥
(17) ग्रन्थ ‘नवद्वीप
धाम महात्म्य’ । भक्तिविनोद कृत महिमा अगम्य ॥
(18) नवद्वीप पुरी व्रज
यात्रा, एकादशी । चतुर्नियम करे पाप विमुक्ति ॥
(19) नित्यानन्द गौरांग
हरे कृष्ण नाम । सर्वत्र प्रचार हय नगरादि-ग्राम ॥
(20) भक्तिवेदांत श्रील
प्रभुपाद । गौरांग-सेनापति महिमा अगाध ॥
(21) प्रभुपाद कहे नवीन
भक्त जन । प्रथमे महामंत्र न करो जपन ॥
(22) प्रथमे निताइ-गौर
नामाश्रय । तबे कृष्ण-नाम विमल रति हय ॥
(23) प्रभुपाद कहे गौर-निताइ
-हरेकृष्ण । नाम में अंतर नहीं – गौर ही कृष्ण ॥
(24) प्रभुपाद कहे जो
जपे गौर नाम । हरे कृष्ण महामन्त्र जप के समान ॥
(25) प्रभुपाद कहे गुरु
इच्छा बलवान । पाश्चात्य देशों में फैले गौर नाम ॥
(26) पंचतत्त्व मंत्र
से आरम्भ करो जप । गौरांग मन्त्र करो सर्व काल जप ॥
(27) निताइ गौर नाम सतत
जपे जो । गृही या त्यागी हो– सदा सेवा करो ॥
(28) प्रभुपाद कहे–
तीन प्रामाणिक नाम । सदा सेवनीय शास्त्र-प्रमाण ॥
(29) प्रभुपाद कहे–
महामंत्र से उत्तम । जो जीव गौरनाम सेवे सर्व क्षण ॥
(30) कृष्ण-नाम सिद्ध
जीव पे कृपा करे । गौर-निताइ नाम– बद्ध जीव उद्धरे ॥
(31) प्रभुपाद कहे–
गुरु चुने योग्य मन्त्र । यथायोग्य शिष्य को दे यथा मन्त्र ॥
(32) गौरांग निताइ नामाश्रय
दीक्षा । जो स्वीकारे परिपूर्ण हो सर्व इच्छा ॥
(33) शिवानंद सेन जपे
चाराक्षर मंत्र । यही मंत्राचार्य– गौरांग मंत्र ॥
(34) भक्तिविनोद और भक्तिसिद्धांत
। कहें गौरभक्त का प्राण गौरनाम ॥
(35) चैतन्य मंगल कहे– गोलोक मंत्र । राधा रुक्मिणी जपे गौरांग मंत्र ॥
(36) सप्त-ऋषि जपे गौरांग
नाम । गौर दर्शन पाय– महाभाग्यवान ॥
(37) शिव ने उमा को
दिया गौरांग मंत्र । उमा कहे अन्य मन्त्र जंजाल तंत्र ॥
(38) मार्कण्डेय के प्रति सुरभि कहे
। गौरनाम जप से भव पार हय ॥
(39) गौरांग कहें– मैं कलि में नारायण । सभी जन रहो मेरे नाम परायण ॥
(40) गौरांग कहे धरा-नगरादि-ग्राम । सर्वत्र प्रचार होगा मेरा यह नाम ॥
(41) निताइ को गौर ने भेजा बंगदेश
। गौरनाम, फिर कृष्णनाम उपदेश ॥
(42) नित्यानन्द आज्ञा–नित्य लह गौरनाम । गौरभक्ति करे–वही नित्यानन्द प्राण ॥
(43) नित्यानन्द आज्ञा को जो भी ठुकराये
। महाविनाश अति तत्क्षण आये ॥
(44) पूर्वकाल सुकृति
जिनके न हय । गौरनाम महिमा प्रकट न हय ॥
(45) उच्च होकर यदि निंदे
गौर नाम । पुनरपि दंडे यम नरकादी स्थान ॥
(46) नित्यानन्द नाम जपे कृष्ण प्रेमोदय
। रोमांचित सब अंग– अश्रु गंगा वय ॥
(47) जे भक्त नित्यानंद नाम श्रवणे
। निश्चय मिले कृष्णचंद्र उसे तत्क्षणे ॥
(48) पुरुषोत्तम, बलराम और रामदास । नित्यानंद नाम जपे– हय उल्लास ॥
(49) निताइ नामाश्रय जो न लय । भवचक्र
पड़े, कभी पार न हय ॥
(50) मूर्ख पतित को निताइ करे पार
। ब्रह्माण्ड पवित्र हय– निताइ नाम सार ॥
(51) नित्यानंद नाम जपे, अपराध जाय
। गौर सम्बन्ध हय, प्रेम भक्ति पाय ॥
(52) हरे कृष्ण महामंत्र– बत्तीस अक्षर । युगल ब्रह्म नाम– जीव तारक प्रखर ॥
(53) ‘हरे’– कृष्णाकर्षिणी राधा स्वयं । ‘राम’ का अर्थ– श्री राधा
रमण ॥
(54) राधाकृष्ण माधुर्य-मधु आस्वादन
। हरेकृष्णमंत्र– स्मृति-जप-कीर्तन ॥
(55) हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण
हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
(56) कलि जीव अपराध असंख्य दुर्वार
। बिना गौरांग नाम हय न उद्धार ॥
(57) नित्यानंद गौरांग कहे एक बार
। सर्व करम दोष अन्त हय तार ॥
(58) नित्यानन्द गौरांग जो जीव पुकारे
। शुद्ध-कृष्णप्रेम उस जीव को पुकारे ॥
(59) गौरांग उपदेश– हरे कृष्ण नाम । नित्यानन्द उपदेश– ‘गौरांग’ नाम ॥
(60) गौरभक्त उपदेश– ‘नित्यानन्द’ नाम । त्रिजनेर आज्ञापालन करे बुद्धिमान ॥
(61) गौर नाम जप से
हो पुलकित शरीर । तभी शुद्धनाम जप से बहे नीर ॥
(62) नयन में जल भरे जपे गौरनाम ।
उसको निताइ माने प्राणों के समान ॥
(63) गौरांग नाम बिना कृष्णभक्ति करे
। कृष्ण बहु काल पाय– अपराध बढ़े ॥
(64) गौरांग नामयुक्त महामंत्र करे
। कृष्ण अतिशीघ्र पाय, माया से तरे ॥
(65) कोटि वर्ष लय कृष्ण नाम जे
जन । अपराध वशे– न रति प्रकटन ॥
(66) गौरांग नाम लय–
कृष्ण कृपा हय । अल्प दिने व्रज-राधाकृष्ण सेवा पाय ॥
(67) निज सिद्धदेह पाय–
सखि-जनाश्रय । कुंज निवास तथा युगल सेवा पाय ॥
(68) नित्यानन्द गौरांग नाम बिना भाई
। न तो पाए राधाकृष्ण– न पाए बलाइ ॥
(69) पशु पक्षी सुने यदि गौरांग नाम
। अंत काल सभी जाएं गौरांग धाम ॥
(70) गौरांग नाम सम पुण्य
व्रत नाहीं । सिद्धि-शांति-मुक्ति-प्रेम– सर्व वस्तु पायी ॥
(71) निताइ-गौर-कृष्ण
नाम सर्वोतम हय । सर्व करम बीज मूल नष्ट हय ॥
(72) पिता-माता-बंधु-सखा-गुरूजी-स्वजन
। गौर नाम अनादरे – हय शत्रु सम ॥
(73) गौरांग जप– कृष्ण नाम जप सम । गौर-कृष्ण भेद करे– पाषंडी
ध्रुवम॥
(74) एक गूढ़ कथा सुनो
सर्व सारासार । माया मुग्ध जीव कभी करे न स्वीकार ॥
(75) कृष्ण-नाम, कृष्ण-धाम–
महिमा अपार । शास्त्र के द्वारा जाने सर्व संसार ॥
(76) किन्तु कृष्ण नाम जो सेवे
बहु काल । कृष्ण प्रेम प्राप्ति हो– अति क्लेश-काल॥
(77) बहु जन्म कृष्णभजे–
प्रेम नहीं पाय । अपराध पुंज से बाधा उपजाए ॥
(78) कृष्ण नाम करे अपराध-विचार ।
जपकाल न हय प्रेम विकार ॥
(79) अपराध शून्य जो जपे कृष्ण नाम
। वही पावे कृष्णचन्द्र-प्रेम अविराम ॥
(80) दस नाम अपराध– कृष्ण नाम गणे । वही अपराध मिटें निताइ-गौर नामे ॥
(81) निताइ गौरांग नाम बड़ विलक्षण
। अपराधी जन को भी मिले प्रेम धन ॥
(82) निताइ गौरांग बोले– उसे प्रेम लभे ।अपराध जाय और पुन: प्रेम बढ़े॥
(83) नित्यानन्द गौरांग नाम-धाम-गुण
। अपराध नहीं माने– तारणे निपुण ॥
(84) हृदय मरूस्थल में भक्ति सूखे
अति । निताइ गौरनाम से वर्षे प्रेम वृष्टि ॥
(85) निताइ गौरांग
जप– मुख्य प्रयोजन । कृष्ण विमुख हो– उन्मुख
तत्क्षण ॥
(86) आया कलि काल घोर, रोग हुआ भारी
। उत्तम औषध बिना निवारण नाही ॥
(87) कृष्ण ने रखे सदा गुप्त जो नाम
। कलि में प्रकाशे निताइ-गौरांग नाम ॥
(88) यही तो परम गुप्त कलि-रहस्य ।
जो भी इसे जाने पाय प्रेमभक्ति रस ॥
(89) कलि जीव योग्य वस्तु–गौरलीलाधन । गौर बिना कलिकाल किंचित न मर्म ॥
(90) गौरांग लीला व्यास–
वृन्दावन दास । कलि काले– चैतन्य भागवत प्रकाश
॥
(91) चैतन्य भागवत जो
सुने यवन । वो महावैष्णव बने तत्क्षण ॥
(92) चैतन्य भागवत– भुवन तारण । महिमा निताइ की परम पावन ॥
(93) श्रीमदभागवत– परमहंस गीता । चैतन्य भागवत न मांगे योग्यता ॥
(94) चंद्रामृत, मंगल और चरितामृत
। चैतन्य भागवत– परम अमृत ॥
(95) नवद्वीप नवखण्ड व्रज नववन । सोलह
नदिया बहे– गुप्त वृन्दावन ॥
(96) नाम संकीर्तन, नवद्वीप-पुरी–
वास । गौर नामाश्रय– पाबे शुद्धभक्ति आश ॥
(97) व्रज-अपराधी पाय
ब्रह्म-निर्वाण। वही नवद्वीप पाय प्रेमभक्ति-ज्ञान ॥
(98) नवद्वीप स्मरण यदि नराधम करे।
महावैष्णव हय– तीर्थ शुद्ध करे ॥
(99) नवद्वीप त्यागे आर सर्व तीर्थ
जाय । दुर्भागा अति– राधाकृष्ण न पाय ॥
(100) सकल साधन भक्ति विहीन जो नर
। नवद्वीप वास करे– पाय प्रेम वर ॥
(101) भोग इच्छा से भी नवद्वीप जाय
। जन्म-मृत्यु-चक्र से सदा मुक्ति पाय ॥
(102) कलिकाल अन्य धाम अत्यंत दुर्बल
।नवद्वीप-पुरी-धाम– परम प्रबल ॥
(103) नवद्वीप-पुरी-व्रज, गौर-कृष्ण
नाम । भेद जो करे– पाय नरक में स्थान ॥
(104) ब्रह्म, परमात्मा– है गौण नाम । हरिलीला संबोधक– है मुख्य नाम ॥
(105) वेदातीत हय– विष्णु सहस्त्र नाम । उसके समान केवल एक राम नाम ॥
(106) तीन राम नाम सम–
एक कृष्ण नाम । कृष्ण नाम मुख्यतर– शास्त्र प्रमाण ॥
(107) निताइ गौर नाम मुख्यतर-मुख्यतम
। सर्व नाम फल मिले जिसके सेवन ॥
(108) निताइ गौर नाम
जय-ध्वज प्रकाश । भक्तिरत्न साधु गौरांगपाद आश ॥
महास्तोत्र महात्म्य अष्टक
(1) यह महास्तोत्र नित्य
जो पढ़े । गौर तत्व विज्ञ बने– गौर धाम चले ॥
(2) अष्टोत्तर-शत श्लोक धरे महाशक्ति
। नित्यपाठ करे– पाबे शुद्ध कृष्णभक्ति ॥
(3) नित्यानन्द-गौरांग-हरेकृष्ण नाम
। इनसे परिपूर्ण– सर्व भक्ति-काम ॥
(4) एक बार पढ़े, या पढ़े बारम्बार ।
मनोवांछित पाय– वृन्दावन विहार ॥
(5) गौरांग नामाश्रय महादीक्षा लय
। नाम जप करे– सर्व इच्छा पूरी हय ॥
(6) भुक्ति-मुक्ति-सिद्धि उसकी दासिका
बने । अन्तकाले सखी संग– श्रीवृन्दवने ॥
(7) भक्तिरत्न साधु स्वामी सदा ये
कहे । भव रोग दूर हय– आनंद मिले ॥
(8) हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण
हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
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