बालक - बालिकाओं के लिए निताइ गौर नाम
यद्यपि राधा-कृष्ण की भक्ति को ‘सुदुर्लभा’ कहा गया है, तथापि नित्यानंद प्रभु, गौरांग महाप्रभु तथा उनके अनुयायी वैष्णव जन की कृपा से यह बड़ों को ही नहीं, बच्चों को भी बड़ी सुगमता से प्राप्त हो सकती है|
श्रीमद्भागवतम में श्री प्रह्लाद महाराज असुर बालकों को उपदेश देते हुए कहते हैं :
कौमार आचरेत प्राज्ञो धर्मान्भागवतान् इह |
दुर्लभं मानुषं जन्मं तद्यपिSध्रुवंSर्थदम् ||
“अपना परमार्थ सिद्ध करने के लिए मनुष्य को चाहिए की कुमारावस्था – अर्थात अल्पायु में ही भगवान् के द्वारा उपदिष्ट तथा संस्थापित भागवद्धर्म (लीला-श्रवण-कीर्तन इत्यादि नवविधा भक्त्यांग) का आचरण करे, क्योंकि यद्यपि यह मनुष्य जन्म अत्यंत दुर्लभ तथा क्षणभंगुर है, तथापि इस से सर्वोच्चतम वस्तु (कृष्ण-प्रेम) प्राप्त किया जा सकता है|”
अतः माता पिता को चाहिए की अपने बालक बालकों को कुमारावस्था से ही निताइ गौर भावनामृत का उपदेश प्रदान करें, जिससे राधा-कृष्ण भक्ति के संस्कार उनमें स्वत: ही प्रकट हो जाएँ|
उदाहरणार्थ बच्चों को सुलेख (Handwriting) का अभ्यास करवाते समय उनको इस प्रकार के वाक्य लिखने के लिए दें जिससे उनमें निताइ-गौर के बारे में जिज्ञासा उत्पन्न हो, अथवा कीर्तन इत्यादि के समय उनसे नामोच्चारण करवा सकते हैं|
इस चित्र में लिखे गए सुलेख को एक ६ वर्षीय बालिका ने लिखा है| आप भी अपने बालकों को इस प्रकार से निताइ-गौर धर्म में प्रवृत्त कर सकते हैं|