निताइ गौर नाम
भगवान् – जो की सृष्टिकर्ता तथा हमारे पालक हैं, अपने दिव्य धाम से इस भौतिक जगत में समय-समय पर असंख्य अंशावतार तथा कलावतार के रूप में अवतरित होते हैं| किन्तु वेद कहते हैं की भगवान् स्वयं ८.६४ अरब वर्ष के अंतराल में केवल दो बार ही अपने पूर्णतम रूप में यश, सौंदर्य, शक्ति तथा अतुलित कृपा से सज्जित हो कर राधा-कृष्ण अथवा निताइ-गौर के रूप में इस धरा-धाम पर अवतरित होते हैं| कलियुग के ४,३२,००० वर्षकाल में केवल प्रथम १०,००० वर्ष ही स्वर्णिम काल के रूप में जाने जाते हैं, जिसमें से प्रथम ५००० वर्ष तो राधा-कृष्ण तथा निताइ-गौर के अवतीर्ण काल के बीच का समय है, तथा अन्य ५००० वर्ष निताइ-गौर के अवतीर्ण होने के पश्चात का समय है|
हम सभी अत्यंत सौभाग्यवान हैं की हमारा जन्म कलियुग के स्वर्णिम काल में हुआ है, और वह भी निताइ-गौर के सन १४८६ ई॰ में अवतीर्ण होने के केवल ५०० वर्षों के उपरान्त, तथा राधा-कृष्ण के सन ३२२८ ई॰पू॰ में अवतीर्ण होने के ५००० वर्षों के उपरान्त| भगवान् निताइ अतुलित कृपा के मूर्तरूप हैं, तथा भगवान् गौरांग कृष्ण-प्रेम प्रदाता हैं| श्रीमती राधिका आह्लाद तथा श्रेष्ठतम सेवाधर्म की परमचार्या हैं, और भगवान् कृष्ण परमाकर्षक-सर्वमोहक पुरुष हैं|
इस प्रकार का यह अति दुर्लभ मनुष्य देह हमें निताइ,गौर तथा हरे कृष्ण महामंत्र के द्वारा, भगवान के साथ हमारे नित्य, किन्तु सुप्त सम्बन्ध को जागृत करने हेतु मिला है| अन्यथा हमें कम से कम ८.६४ अरब वर्ष तक असंख्य कष्टों को सहते हुए, (सृष्टि के चतुर्थांश में स्थित) अनंत भौतिक ब्रह्माण्डों में पुन:-पुन: जन्म लेना पड़ेगा – जिससे हमारे उद्धार का पथ बहुत ही लम्बा हो जाएगा|
स्वरूपत: सभी जीव शरीर से भिन्न तत्त्व (आत्मा) हैं, जोकि निताइ-गौर का केवल एक अणु-अंश मात्र है एवं सत्-चित्-आनंद युक्त है| यह आत्मा एक बाल की नोक के १०,००० वें भाग जितना छोटा है, तथा शरीर के हृदय-देश में स्थित होता है| प्रत्येक आत्मा भगवान् की तटस्था नामक शक्ति से प्रकट हुआ है, अत: अपने प्राकट्य-काल के समय प्रत्येक आत्मा वैकुण्ठ-जगत तथा जड़-जगत के सीमादेश – अर्थात तट पर स्थित होता है| उस स्थान पर वह भगवान् निताइ-गौर के दिव्य शरीर से प्रकट होने वाली रश्मियों के एक अति सूक्ष्म ज्योति-स्फुलिंग के रूप में होता है| किन्तु अपनी अणु-स्वतंत्रता का दुरूपयोग करके कोई-कोई आत्मा भगवान् की आनंददायिनी सेवा के प्रति आकृष्ट न हो कर, अपने सुख-भोग के प्रति आकृष्ट हो जाता है| इस कारण से उसे जड़देश में स्थित अनंत भौतिक ब्रह्माण्डों में से किसी एक ब्रह्माण्ड में पतित होना पड़ता है| पतित होने पर उस आत्मा का स्वरुप सूक्ष्म-स्थूल शरीर के द्वारा आच्छादित हो पड़ता है| कर्मफल के कारण ८४ लाख योनियों में जन्म-मरण की अतीव कष्टदायक यात्रा प्रारम्भ हो जाती है| मृत्यु के समय आत्मा का नाश नहीं होता, अपितु सूक्ष्म देह से आच्छादित होकर वह दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाता है| यह सूक्ष्मदेह मन, बुद्धि तथा मिथ्या अहंकार (अहम्-भाव) से बना होता है| जिस प्रकार से हम पुराने वस्त्रों को उतार कर नए वस्त्र धारण कर लेते हैं, उसी प्रकार से परमात्मा केसाथ, आत्मा एक देह से दूसरे देह में गमन करता है| यह स्थूल देह पञ्चभौतिक तत्त्व – अर्थात पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु तथा आकाश से बना हुआ होता है|
आत्मा के नित्य-स्वरुप, स्वभाव और प्रेम को ‘धर्म’ कहते हैं | प्रत्येक आत्मा का भगवान् निताइ-गौर तथा राधा-कृष्ण के प्रति यह विशुद्ध, किन्तु सुप्त प्रेम को जागृत करने के विज्ञान को निताइ-गौर-नाम कहते हैं| निताइ-गौर-नाम इस संसार में हमारी वर्तमान अवस्था को तो सुख से आप्लावित करता ही है, साथ-ही-साथ हमें नित्य-स्वदेश – अर्थात भगवद्धाम की प्राप्ति भी करवाता है| यह भगवद्धाम सृष्टि के तीन-चौथाई भाग में फैला हुआ है| उस धाम में प्रत्येक आत्मा अपने स्वरुप के अनुसार भगवान् के साथ नित्य पञ्च-भावों में से किसी एक भाव में रमण करता है– शांतभाव, दास्यभाव, सख्यभाव, वात्सल्य-भाव तथा माधुर्य-भाव| नित्य धाम की प्राप्ति करने के पश्चात कोई भी आत्मा इस जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि से युक्त स्थूल-शरीर से पुन: आवृत्त नहीं होता, और न ही वह संसार में पुन: पतित होता है| अत: यह निताइ-गौर-नाम केवल जीने की कला ही नहीं, अपितु मरने की कला भी सिखाता है, और विश्व-शान्ति एवं सुख-समृद्धि की सुस्थापना भी करता है|
निताइ तथा गौर – ‘कृपा’ तथा ‘प्रेम’ के मूर्तिमंत विग्रह हैं, और राधा व् कृष्ण – ‘आनंद’ तथा ‘माधुर्य’ के साक्षात स्वरुप हैं| अत: सर्वप्रथम भगवान् की कृपा प्राप्ति हेतु हमें निताइ-गौर के साथ अपने नित्य-सम्बन्ध को जानना होगा| निताइ तथा गौर – यह इस कलियुग में भगवान् के नवीनतम अवतार हैं, तथा सम्पूर्ण सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता हैं| बलराम ही निताइ के रूप में इस कलियुग में प्रकट हुए हैं, तथा कृष्ण ही गौर के रूप में आये हैं | अत: सर्वप्रथम निताइ तथा गौर के नाम – अर्थात ‘नित्यानंद’ और ‘गौरांग’ मन्त्र की माला नियम-पूर्वक जप करके ही हम हरे कृष्ण महामंत्र (हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे) का निरंतर जप करके श्रीमती राधिका को जान सकते हैं – जोकि भगवान् की आह्लादिनी-शक्ति स्वरूपा परम-प्रिय प्रेयसी हैं| यह सिद्धांत ही निताइ-गौर धर्म का मूल स्तम्भ है| श्रील नरहरी सरकार ने भी ‘गौरांग धरम’ शब्दों का प्रयोग किया है एवं श्रीमद्भागवत में एवं आदि पुराण में नाम को ही परा ‘क्रिया’ बताया गया है|
निताइ-गौर नाम
निताइ-गौर नाम में मंत्र-जप, मन्त्र-लेखन, तथा मन्त्र-प्राणायाम – यह तीन वैज्ञानिक, अत्यंत शक्तिशाली, चमत्कार-युक्त तथा सार्वभौमिक क्रियाएं हैं|
निताइ-गौर मंत्र
तीन मंत्र – १. ‘नित्यानंद’ २. ‘गौरांग’ ३. ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे’ – का तुलसी (अथवा किसी भी अन्य) १०८ मनकों की माला पर धीमे अथवा उच्च स्वर में जप करना या गाकर कीर्तन करना| माला के प्रत्येक १०८ मनकों पर तीनो मंत्रो को अलग से जप करने पर उस मंत्र की एक माला पूरी हो जाती है| इस जप के भी चार स्तर हैं –
• नित्यानंद गौरांग मंत्र दीक्षा (६०४८ भगवन्नाम प्रतिदिन जप) –“नित्यानंद” एवं “गौरांग” मंत्र की १६ माला तथा हरेकृष्ण महामंत्र की ४ माला
• हरेकृष्ण महामंत्र दीक्षा (३४,५६० भगवन्नाम प्रतिदिन जप) – “नित्यानंद” एवं “गौरांग” मंत्र तथा हरेकृष्ण महामंत्र – तीनो मंत्रो की १६ माला
• गायत्री मंत्र दीक्षा (५५,२९६ भगवन्नाम प्रतिदिन जप) – “नित्यानंद” एवं “गौरांग” मंत्र की ६४ माला तथा हरेकृष्ण महामंत्र की १६ माला
• लक्षेश्वर मंत्र दीक्षा (१,०३,६८० भगवन्नाम प्रतिदिन जप) – “नित्यानंद” एवं “गौरांग” मंत्र तथा हरे कृष्ण महामंत्र – तीनो मंत्रो की ६४ माला
माला जप करते समय माला को बांये हाथ की मध्यमा (बड़ी उन्गली) के मध्य में रखना चाहिए, तथा नीचे की तीन उँगलियों को एक दूसरे से सटा कर रखनी चाहिए|
एक मंत्र को एक मनके पर जप करने के पश्चात, उस मनके को अंगूठे से अपनी ओर खिसका देना चाहिए, तथा फिर अगले मनके पर इसी प्रकार से जप करना चाहिए| किन्तु तर्जनी (अंगूठे के साथ वाली उंगली) से जप नहीं करना चाहिए|
नित्य का अर्थ है शाश्वत, तथा आनंद का अर्थ है दिव्य सुख| गौर का अर्थ है पिघले हुए स्वर्ण जैसा और अंग का अर्थ है दिव्य विग्रह| अत: नित्यानंद और गौरांग यह दोनों ही भगवन्नाम हैं| गौर शब्द में ‘गौ’ का अर्थ है गोविन्द और ‘र’ का अर्थ है राधा| अतः कृष्ण राधिका का गौर वर्ण ८.६४ अरब वर्ष में केवल एक बार ही अंगीकार करते हैं, और गौर अथवा गौरांग के छन्नरूप (छिपे हुए रूप) में प्रकट होते हैं| उस समय बलराम भी अत्यंत कृपापूर्ण निताइ अथवा नित्यानंद के रूप में प्रकट होते हैं – जोकि समस्त शक्ति तथा आनंद के स्त्रोत हैं| हरे का अर्थ है हरा – अर्थात श्रीमती राधिका – जो कृष्ण के ह्रदय को भी हर लेतीं हैं| वे कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति हैं| ‘राम’ का अर्थ है दिव्यानंद के उपभोक्ता|
निताइ-गौर मंत्र लेखन
भगवान् के ‘निताइ’ नाम को १० चरण में तथा ‘गौर’ नाम को ८ चरण में संस्कृत में लिखने की क्रिया:
•कलम या पेंसिल/पेन से पृष्ठ पर, अथवा उन्गली से केवल आकाश में लिखना
• मन के द्वारा मानसिक लेखन
•लिखे जाने वाले नामाक्षर का दर्शन करना
• मन के द्वारा नामाक्षर के आकार का ध्यान करना
प्राणायाम के अंतर्गत दीर्घ श्वास लेना निहित है, जिसमे निम्नलिखित क्रिया द्वारा श्वास लिया और छोड़ा जाता: दोनों अथवा एक नासिका से ‘नि’ और ‘ताइ’ नामाक्षरों का क्रमश: श्वास लेते तथा छोड़ते समय मानसिक दर्शन करना तथा दूसरी बार श्वास लेते और छोड़ते समय ‘गौ’ तथा ‘र’ नामाक्षरों का मानसिक दर्शन करना|आप इन दो श्वासों के क्रम को दिन के किसी भी समय सुविधानुसार कर सकते हैं|
Hare Krishna🙏
ReplyDeleteहरे कृष्णा,हरे रामा…🙏
ReplyDeleteहरे कृष्ण हरे कृष्ण
ReplyDeleteHare Krishan Hare Krishan , Krishan Krishan Hare Hare
ReplyDeleteHare Ram Hare Ram , Ram Ram Hare Hare